-: National Radio Day :-
प्रो. आरके जैन- रेडियो, वह जादुई माध्यम, जिसने बीसवीं सदी से इक्कीसवीं सदी तक मानव जीवन को गहराई से प्रभावित किया, आज भी उतना ही प्रासंगिक है। यह केवल एक तकनीकी उपकरण नहीं, बल्कि एक ऐसा सेतु है, जो समाज को जोड़ता है, भावनाओं को आवाज़ देता है और बदलाव की प्रेरणा बनता है। रेडियो की तरंगें, जो कभी बिजली की अनुपस्थिति में भी गाँव-गाँव तक पहुँचती थीं, आज डिजिटल युग में भी अपनी आत्मीयता और पहुंच के कारण लाखों दिलों में बसी हैं। राष्ट्रीय रेडियो दिवस इस अनमोल धरोहर का उत्सव है, जो हमें याद दिलाता है कि कैसे रेडियो ने सूचना, मनोरंजन और एकता को हर घर तक पहुँचाया।
रेडियो का उदय उस युग में हुआ जब संचार साधन सीमित थे। 1890 के दशक में मार्कोनी ने रेडियो तरंगों से संचार की क्रांति शुरू की। भारत में 1920 के दशक में बॉम्बे और कलकत्ता में रेडियो स्टेशन बने, और 1936 में आल इंडिया रेडियो ने इसे औपचारिक मंच दिया। टेलीविजन और इंटरनेट के अभाव में, रेडियो की सरलता—बिना साक्षरता या महंगे उपकरणों की आवश्यकता—ने गाँवों से शहरों तक हर दिल को जोड़ा। स्वतंत्रता संग्राम में आजाद हिंद रेडियो जैसे प्रसारणों ने नेताजी के संदेशों से ब्रिटिश शासन को चुनौती दी। स्वतंत्रता के बाद, रेडियो भारत की सांस्कृतिक और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बना।
रेडियो ने सूचना प्रसार के साथ-साथ सामाजिक परिवर्तन को भी बढ़ावा दिया। किसानों को कृषि कार्यक्रमों से आधुनिक तकनीक और मौसम की जानकारी मिली, जिसने उनकी आजीविका को सशक्त किया। गृहणियों ने स्वास्थ्य, स्वच्छता और शिक्षा के प्रसारणों से जागरूकता प्राप्त की। बच्चों की कल्पनाशीलता को कहानियों-कविताओं ने पंख दिए, तो बुजुर्गों को भक्ति और शास्त्रीय संगीत ने आत्मिक शांति दी। इस तरह, रेडियो हर वर्ग का प्रिय साथी बना। आपदा में इसकी भूमिका अनमोल रही—2004 की सुनामी और 2013 की उत्तराखंड बाढ़ में बैटरी चालित रेडियो ने जीवन रक्षक सूचनाएँ पहुँचाकर राहत कार्यों को दिशा दी। संयुक्त राष्ट्र भी इसे आपदा प्रबंधन का सबसे विश्वसनीय माध्यम मानता है।
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रेडियो ने मनोरंजन में अमिट छाप छोड़ी। 1950-60 के दशक में ‘बिनाका गीतमाला’ और ‘विविध भारती’ ने अमीन सायानी की आवाज़ में फिल्मी संगीत को घर-घर पहुँचाया, हर गाना उत्सव बन गया। क्रिकेट कमेंट्री ने श्रोताओं को स्टेडियम का रोमांच जिया, उन्हें घटनास्थल से जोड़ा। आज रेडियो ने ट्रांजिस्टर से एफ.एम. और इंटरनेट रेडियो तक का सफर तय किया। 400 से अधिक सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थानीय भाषाओं में शिक्षा, स्वास्थ्य और संस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं। इंटरनेट रेडियो और पॉडकास्ट ने इसकी वैश्विक पहुँच बनाई, जिससे मोबाइल पर दुनिया भर के स्टेशन सुने जा सकते हैं।
रेडियो ने अर्थव्यवस्था को गति देते हुए रेडियो जॉकी, ध्वनि इंजीनियर, स्क्रिप्ट राइटर और विज्ञापन विशेषज्ञ जैसे पेशों में लाखों युवाओं, खासकर महिलाओं, को रोजगार दिया, जहाँ केवल आवाज़ मायने रखती थी, लैंगिक समानता को बढ़ावा मिला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘मन की बात’ कार्यक्रम, जो 2014 से आल इंडिया रेडियो (Radio) पर प्रसारित होता है, ने रेडियो को फिर से जन-जन का माध्यम बनाया। यह मासिक कार्यक्रम सामाजिक मुद्दों, सरकारी योजनाओं जैसे स्वच्छ भारत, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, डिजिटल इंडिया और प्रेरक कहानियों को स्थानीय भाषाओं में गाँव-शहर तक पहुँचाता है, लोगों को प्रेरित करता है। ‘मन की बात’ ने रेडियो (Radio) की प्रभावशीलता और समावेशिता को पुनर्जनन दिया।
राष्ट्रीय रेडियो दिवस रेडियो (Radio) की विरासत और वर्तमान-भविष्य में इसकी प्रासंगिकता को रेखांकित करता है। टेलीविजन और इंटरनेट के युग में भी रेडियो (Radio) की आत्मीयता अद्वितीय है, जो बिना स्क्रीन के लोगों को उनके रोजमर्रा के कामों के साथ जोड़ता है। शहरों में ट्रैफिक में फँसा व्यक्ति हो या गाँव का किसान, रेडियो (Radio) उनकी भाषा में संवाद करता है।
डिजिटल इंडिया में सामुदायिक रेडियो ग्रामीण भारत के लिए सूचना-शिक्षा का सशक्त साधन है, जो किसानों को बाज़ार भाव-मौसम की जानकारी, छात्रों को ई-लर्निंग, महिलाओं को स्वास्थ्य-स्वच्छता शिक्षा, और युवाओं को कौशल विकास प्रदान करता है। पॉडकास्टिंग ने नई पीढ़ी को, और इंटरनेट रेडियो (Radio) ने स्थानीय संस्कृतियों को वैश्विक मंच से जोड़ा, जबकि प्रवासी भारतीय अपनी मातृभाषा में रेडियो सुनकर जड़ों से जुड़े रहते हैं।
रेडियो वह अमर आवाज़ है, जो कभी थमती नहीं। बिना चेहरा दिखाए, यह दिलों को जोड़ता है। राष्ट्रीय रेडियो दिवस हमें इसकी समृद्ध विरासत को संजोने और इसके उज्ज्वल भविष्य को गढ़ने की प्रेरणा देता है। ‘मन की बात’ जैसे कार्यक्रमों ने साबित किया कि Radio आज भी समाज को एकजुट करने, शिक्षित करने और प्रेरित करने का सबसे लोकतांत्रिक और शक्तिशाली माध्यम है। यह न केवल अतीत की अनमोल धरोहर है, बल्कि वह सेतु भी है, जो हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखता है। इसकी तरंगें सदा हमारे दिलों में गूंजती रहेंगी।