रावण के पुतले का नही हवसी दरिंदों का दहन किया जाये

-: Vijayadashami 2025 :-

एक बार फिर समूचा भारत देश विजयादशमी अर्थात दशहरा का पर्व पुरे जोश और उत्साह के साथ मनाने जा रहा हे ! विजयादशमी का पर्व सत्य की जीत का पर्व हे अधर्म के विनाश का प्रतीक हे ! विजयादशमी का पर्व न केवल हिन्दू समुदाय का पर्व हे बल्कि यह पर्व तो सभी जाती धर्मो के लोगो के लिए भी आदर्श चरित्र निर्माण का पर्व हे जिसके माध्यम से हम अपना और आने पीढ़ियों का चरित्र गढ़ सकते हे !

दशहरा का पर्व जिसे हमारे देश में कभी आदर्श चरित्र निर्माण का पर्व मानकर उसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता था उसे वर्तमान की अति शिक्षित आधुनिक होती पीढ़ी के लोगो ने महज रावण के पुतला दहन का पर्व समझ कर धूम धडाका और पार्टी का पर्व बना दिया हे ।

वर्तमान की आधुनिक पीढ़ी के अधिकांश लोगो मान्यता यह हे कि दुनिया का सबसे बड़ा अपराधी लंका लंकापति रावण हे जिसके विनाश दशहरे पर भगवान राम के हाथो हुआ था और इसी वजह से प्रतिवर्ष रावण का पुतला दहन किया जाता हे ! आज देश के लोग राम और रावण नाम से परिचित जरुर हे लेकिन क्या देश की अतिशिक्षित पीढ़ी राम और रावण के आदर्श व्यक्तित्व और चरित्र से भी भली भाति परिचित हे ?

रावण दहन करने की और रावण के चरित्र को बुरा बताने की बातें तो सभी करते हे लेकिन क्या आज राम जैसे चरित्रवान धीर गम्भीर सभी से प्रेम करने वाले व्यक्ति समाज में कितने हे ? आज राम के आदर्श चरित्र की बातें तो सभी करते हे लेकिन क्या वह अपने जीवन में भी राम की तरह ही अपने भाइयों से राम की तरह प्रेम करते हे ? क्या राम की तरह अपने भाइयों के लिए त्याग की भावना रखते हे ? क्या राम की तरह अपने माता पिता की आज्ञा का पालन करते हे ?

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इस तरह के कई प्रश्न हे जिसका जवाब हमें समाज में बिखरते परिवारों के रूप में देखने को हर कहीं मिलता हे जहां आज भाई ही भाई का दुश्मन हे ! आज एकल होते परिवार किस मुंह से रावण की बुराई कर रहे हे यदि वे राम होते तो वसुधैव कुटुंब के पक्षधर होते और अपनों के बिना अपने भाइयो के बिना एक पल भी अलग नही रहते लेकिन आधुनिक शिक्षित पीढ़ी में ऐसे कितने राम आज हे जो भाई के लिए अपना सबकुछ त्याग करने की भावना रखते हो ? आज के आधुनिक युग में आदमी न तो आदर्शवादी राम बन पाया और न परम प्रतापी शिव भक्त रावण बन पाया हे ?

आज देश दुनिया की छोड़ो घर परिवार और समाज को ही देख लीजिये किस प्रकार का हनन हो रहा हे ? महिलाओ लड़कियो की तो छोड़ो आज छोटी छोटी बालिकाओं के साथ दरिंदगी की घटनाये हो जाती हे ! आज देश में किस धर्म किस समाज में महिलाएं बेटिया सुरक्षित हे ! जिधर देखो उधर हवस के भेड़िये नारी अस्मिता को लीलने की ताक में बेठे रहते हे ।

देश में हर वर्ष सेकड़ो की तादाद में मासूम बच्चियों हवसी भेड़ियों का शिकार हो जाती हे और हजारो बेटियों का जीवन हवसी लील लेते हे उसके बाद भी अगर समूचे समाज के लोग एक रावण के पुतले को ही हर बरस सबसे बड़ा महापापी मानकर उसका दहन कर दिल को झूठी तसल्ली देते रहेगे तो फिर इस देश में माताओ और बेटियों की अस्मिता आबरू को बचाएगा कोन ?

रावण तो सबसे बड़े प्रकांड पंडित थे जिन्होंने अपनी भक्ति के बल पर भगवान शंकर को साक्षात प्रसन्नचित कर रखा था ! रावण को पता था प्रभु के हाथों के बिना उसकी मृत्यु होना नही हे और बिन अपराध के प्रभु से उसे यह अवसर प्राप्त होना नही हे ! इसलिए रावण ने सीता हरण की जो भी माया रची उसके पीछे उसका सिर्फ एक ही स्वार्थ कहा जाये की प्रभु के हाथो मोक्ष प्राप्त किया जाये ।

जिस राम के युग में स्त्री के सतीत्व को छूना महापाप कहलाता था और रावण वध तक हो गया था तो क्या आज के आधुनिक युग में मासूम बेटियों और लड़कियों की अस्मिता लीलने वाले हवसी दरिंदों का रावण की पुतले की जगह सरेआम दहन कर क्यों नही दशहरा नये तरीके से मनाया जाए ? आखिर कब तक आतंकियों की तरह ही नारी अस्मिता लुटने वाले हवसी भेडियो को जेलों में दामाद की तरह पाल कर समाज अपनी बेटियों के अपमान का घुट बर्दाश्त करता रहेगा ।

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