व्रत करना एक तप हे फैशन या दिखावा नही हे

-: Vrat Ke Niyam  :-

भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश हे जहां हर दिन कोई न कोई त्यौहार होता हे। हमारे यहां प्राचीन काल से त्योहारों पर या विशेष माह में या विशेष दिनों में व्रत या उपवास किया जाता हे। वर्तमान भारतीय बाजारों में फलाहार की खाद्य वस्तुए का एक बड़ा बाज़ार होना भारतीय उपवास परम्परा की महता को दर्शाता हे कि भारत में व्रत परम्परा की जड़े कितनी गहरी और फेली हुई हे।

आज समय के साथ जब सब कुछ बदल रहा हे तो फिर वर्तमान आधुनिक युग में उपवास की परम्परा भी अपने मूल स्वरूप से इतर हाईटेक हो गई हे। पहले उपवास करना या व्रत करने पीछे महान उद्देश्य आत्मिक वैचारिक शुद्धता का होता था ताकि भक्त अपने आराध्य से व्रत के माध्यम से सीधे सम्पर्क स्थापित कर और अपने अंतर्मन में निर्गुण या सगुण रूप में अपने आराध्य को अपने आसपास होने का एहसास कर सके।

भारत में कई दिव्य महिला और पुरुष हुए हे जिन्होंने अपने अपने व्रत के बूते ईश्वर से सीधे साक्षात् रूप में सीधे सम्पर्क स्थापित कर बेबाक होकर बातचीत की हे और आज भी कई ऐसे दिव्य संत महात्मा और महिला और पुरुष हे जो प्राचीन कालीन व्रत परम्परा का शुद्धता से पालन कर अपने आराध्य से बेधडक चर्चा भी करते हे लेकिन ऐसे दिव्य लोगो को आधुनिकता की चकाचौंध में स्वार्थ लिप्सा से भरी आँखों वाले कहां देख पाते हे।

वर्तमान आधुनिक युग में शेने शेने हर धर्म में पूजा पद्धति व्रत उपवास आदि धार्मिक आध्यात्मिक कार्य भी आधुनिक हाईटेक होकर रस्म अदायगी भर होते जा रहे हे ! आज यह सच्चाई अमूमन सभी धर्मो की आधुनिक होती पीढ़ी की हे कि वह सच्चे मन से अपने ईश्वर से जुड़ ही नही पा रही हे सिर्फ एक रस्म अदायगी करने भर या दिखावे हेतू अपने आराध्य के प्रतिको के आगे झुकती हे या फिर उनके नाम का व्रत करती हे।

भय या पाप की कुशंका से जबरन या बेमन से ईश्वर को याद करना या करवाना या फिर अपने स्टेटस को सजाने या लाइक के दिखावे हेतू किये गये व्रत या पूजा का कोई लाभ कभी प्राप्त होता ही नही हे।


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पूजा या व्रत का सम्बन्ध आत्मा की शुद्धता से होता हे और मन की निर्मलता से होता हे जिसमें इच्छा या लालसा का लेस मात्र भी स्थान नही होता हे। भक्त खुद अपने आराध्य की भक्ति में या व्रत में शुद्ध मन से इतना तल्लीन हो जाता हे कि उसे भूख प्यास इच्छा तृष्णा तेरा मेरा किसी का भी भान उसके ध्यान में रहता ही नही हे। सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति में डूबे हुए भक्त को या जिसने अपने आप स्वयं को ईश्वर को समर्पित कर दिया हो उस व्यक्ति का लालसा से रहित हो जाता हे और वह अपने शुद्ध ह्र्ध्य और निर्मल आखो से यत्र तत्र सर्वत्र देश सकता हे एहसास कर सकता हे !

सभी धर्मों के धार्मिक ग्रंथो में ईश्वर से जुड़ने की पहली शर्त शुध्य ह्र्ध्य और पवित्र मन का होना हे। बेशक आधुनिक युग इच्छा, लालसा, तृष्णा और कामुकता से भरा हुआ हे ! बेकोल आधुनिक युग में सभी धर्मों में ईश्वरीय भक्ति का अर्थ आस्था से लगाव कम और दिखावा ज्यादा बनता जा रहा हे। आज आप अपने खुद के घरो में ही देख लीजिये अधिकतर घर सदस्यों की सुबह मोबाईल दर्शन से होती हे और रात भी मोबाइल दर्शन से हो रही हे।

आज देश में सिर्फ पुरानी पीढ़ी के बचे खुचे लोग ही घर के एक कोने में ईश्वर का अस्तित्व बचाए हुए नव पीढ़ी के अपने ही घर के लोगो से संघर्ष करते देखे जाते हे। ईश्वरीय आस्था के धार्मिक स्थल सबसे पवित्र सकारात्मक वातावरण से भरे होते हे जहाँ पर अशांत भटका हुआ मन शांत स्थिर होने लगता हे लेकिन आधुनिक विचार वाले लोगों ने ईश्वरीय आस्था के धार्मिक स्थलों को मोज मस्ती का पर्यटक स्थल बनाकर उसे अशुद्ध करने पर तुले हुए हे और ऐसे लोगो की तादाद बड़ी संख्या में बढ़ रही हे।

व्रत या उपवास का सम्बन्ध संकल्प से होता हे मन की मजबूती से होता हे ! ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने आराध्य को ध्यान कर निस्वार्थ सच्चे मन से उक्त दिवस को भोज्य और भोग्य वस्तुओ के त्याग के संकल्प से किया गया व्रत या उपवास से आत्मा शुद्ध और मन पवित्र होता हे जो आराध्य और भक्त के मिलन के मार्ग को सुगम बनाता हे।

आज कितने लोग ब्रह्म मुहूर्त में उठकर व्रत की शुरुआत पवित्र संकल्प से करते हे ? इस देश का दुर्भाग्य यह हे कि हाईटेक उच्च शिक्षित पीढ़ी ने हमारे वेद ग्रंथो और मन्त्रो की महता को पढ़े समझे बिना ही धार्मिक व्रत और त्योहारों के ऐपो को पूजा पद्धति और व्रत का सर्वोतम प्लेट फार्म मान लिया हे।

आज भव्य बड़े बड़े घरो में ईश्वर भी सजावट की वस्तु बनकर रह गये हे। आधुनिक विचारधारा वाले अधिकांश लोग आज जब अपने घर के ईश्वर की पूजा करने को ही एक काम गिनाते हे तो चिन्तन करे ईश्वर के नाम पर किया गया व्रत या उपवास करना उनके लिए किसी बड़े बोझ से कम नही होगा ! लेकिन मोबाइल के इस युग में हर त्यौहार पर व्रत या उपवास के फोटो अपने स्टेट्स की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए लोड करना जहा आज की अनिवार्यता बन गई हे तो ऐसे में व्रत या उपवास सिर्फ दिखावे की रस्म अदायगी भर ही रह जायेगे।


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